Saturday, 31 October 2015

धर्म के लक्षण

धृति: क्षमा दमोस्तेयं
शौचमिन्द्रियनिग्रह: ।
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो
दशकं धर्मलक्षणम् ।।
(मनु. 6/12)

☝ धैर्य रखना, सहनशील होना, मन को अधर्म से रोकना, चोरी त्याग, राग द्वेष न करना, इन्द्रियों को धर्म में चलाना, बुद्धि बढ़ाना, विद्वान् बनना, सत्याचरण और क्रोध न करना ये दश धर्म के लक्षण है ।

सुप्रभात । नमस्ते ।
भास्कर पाठक
9999304525

Friday, 30 October 2015

तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा

भोगा न भुक्ता वयमेव भुक्ता:,
तपो न तप्तं वयमेव तप्ता: ।
कालो न यातो वयमेव याता:,
तृष्णा न जीर्णा वयमेव जीर्णा: ।।
☝☝ हम सांसारिक विषय भोगों का उपभोग नहीं कर पाये, अपितु उन भोगों को प्राप्त करने की चिंता ने हमको भोग लिया ।
🙏 हमने तप नहीं किया, बल्कि आध्यात्मिक, आधिभौतिक, आधिदैविक ताप हम को ही जीवन भर तपाते रहे ।
🌷 भोगों को भोगते भोगते हम काल को नहीं काट पाये, अपितु काल ने हमको ही नष्ट कर दिया ।
🌹 इसी प्रकार भोगों को प्राप्त करने की तृष्णा तो बूढी नहीं हुई अपितु हम ही बूढ़े हो गये ।🙏🙏🙏
🌷 भतृहरि वैराग्य शतकम् 🌷

सुप्रभात । भास्कर पाठक
9999304525

Monday, 12 October 2015

मेरी असफलता ही मेरी सफलता है ।

मेरी असफलता ही मेरी सफलता है ।

मैं असफल हूँ क्योंकि मैं झूठ नहीं बोलता ।

मैं असफल हूँ क्योंकि मैं धोखा नहीं देता ।

मैं असफल हूँ क्योंकि मैं दिखावा नहीं करता ।

मैं असफल हूँ क्योंकि मैं चोरी नहीं करता ।

मैं असफल हूँ क्योंकि चुगलखोरी नहीं करता ।

मेरी असफलता ही मेरी सफलता है ।

मैं असफल हूँ क्योंकि मैं रिश्वतखोर नहीं हूँ ।

मैं असफल हूँ क्योंकि मैं मुँहचोर नहीं हूँ ।

मैं असफल हूँ क्योंकि मैं अमीर नहीं हूं ।

मैं असफल हूँ क्योंकि मैं नेता या फ़क़ीर नहीं हूँ ।

मेरी असफलता ही मेरी सफलता है ।

🌷🌷भास्कर पाठक🌹🌹

Tuesday, 6 October 2015

राष्ट्र का पिता नहीं पुत्र होता है ।

इस राष्ट्र में जन्मा कोई भी व्यक्ति राष्ट्र का पुत्र ही हो सकता है, पिता नहीं ।

"माता भूमि: पुत्रो अहं पृथिव्या"
-
अथर्ववेद इस भूमि को माँ और सभी को इसका पुत्र कहा, स्वयं प्रभु श्रीराम ने इस जन्मभूमि को जननी और स्वयं को इसका पुत्र कहा ।
-
मोहनदास करमचंद वेदों से और राम से बड़े नहीं हैं,,, वे राष्ट्र के पुत्र हो सकते है, राष्ट्रपिता नहीं.......

Friday, 2 October 2015

जात-पात, भेद-भाव

सब्जी खरीदते समय जाति नहीं देखी जाती
मगर उसी सब्जी को खिलाते समय जाति देखी जाती हैं।।
फसल कटाई पर जाति नहीं देखते
मगर उसकी बनी रोटिया खिलाते समय जाति देखी जाती हैं।।
मकान बनबाने के लिए जाति नहीं देखते
मगर जब मकान बन जाये तो उसमे बैठाने केलिए जाति देखते हैं।।
मंदिर बनबाने के लिए जाति नहीं देखते
मगर उसमे जाने के लिए जाति देखते हैं।।
स्कूल या कॉलेज बनबाने के लिए जाति नहीं देखते
लेकिन पढ़ाई के वक़्त जाति देखि जाती
हैं।।
कपडे खरीदते समय जाति नहीं देखते मगर उन्ही कपड़ो को पहनकर उनसे दूर भागते हैं ।

भेद भाव जात पात की सामाजिक मानसिकता से जब तक बाहर नही निकलेंगे तब तक देश का सम्पूर्ण विकास नहीं होगा ।