सब्जी खरीदते समय जाति नहीं देखी जाती
मगर उसी सब्जी को खिलाते समय जाति देखी जाती हैं।।
फसल कटाई पर जाति नहीं देखते
मगर उसकी बनी रोटिया खिलाते समय जाति देखी जाती हैं।।
मकान बनबाने के लिए जाति नहीं देखते
मगर जब मकान बन जाये तो उसमे बैठाने केलिए जाति देखते हैं।।
मंदिर बनबाने के लिए जाति नहीं देखते
मगर उसमे जाने के लिए जाति देखते हैं।।
स्कूल या कॉलेज बनबाने के लिए जाति नहीं देखते
लेकिन पढ़ाई के वक़्त जाति देखि जाती
हैं।।
कपडे खरीदते समय जाति नहीं देखते मगर उन्ही कपड़ो को पहनकर उनसे दूर भागते हैं ।
भेद भाव जात पात की सामाजिक मानसिकता से जब तक बाहर नही निकलेंगे तब तक देश का सम्पूर्ण विकास नहीं होगा ।
No comments:
Post a Comment