Friday, 18 December 2015

दो शब्दों की दुनिया

दो शब्दों की दुनिया है :--

जन्म मृत्यु
लोक परलोक
पाप पुण्य
सुख दुःख
ख़ुशी गम
हार जीत
मान अपमान
तेरा मेरा
भला बुरा
अमीर गरीब
ऊँचा नीचा
छोटा बड़ा
स्त्री पुरुष
योग भोग
मित्र शत्रु
अपना पराया
स्वर्ग नरक

बस दो शब्दों में सिमट जाती है ये दुनिया .........

भास्कर पाठक

Sunday, 29 November 2015

यज्ञ का अनुष्ठान

🌹🌹  महर्षि दयानंद उवाचः  🌹🌹
✒...................☝ यज्ञ के अनुष्ठान के विना उत्साह बुद्धि सत्यवाणी धर्माचरण की रीति तप धर्म का अनुष्ठान और विद्या की पुष्टि का संभव नहीं होता और इनके विना कोई भी मनुष्य परमेश्वर की आराधना करने को समर्थ नहीं हो सकता । इससे सब मनुष्यों को इस यज्ञ का अनुष्ठान करके सबके लिये सब प्रकार आनन्द प्राप्त करना चाहिये ।👌👌👌

यजुर्वेद 4/7 (भावार्थ)

🌞🌞🌞सुप्रभात् 🌞🌞🌞
🙏🙏🙏नमस्ते 🙏🙏🙏
🌺🌹 भास्कर पाठक🌺🌹
         9999304525

Tuesday, 10 November 2015

प्रेम और ध्यान

प्रेम दूसरों के साथ रहने की कला है
और ध्यान स्वयं के साथ रहने की कला.

दोनों एक सिक्के के दो पहलू हैं

दीपावली की शुभकामनाएं 🙏🏻🙏🏻 
      ।।। नमस्ते ।।।

Sunday, 8 November 2015

जीवात्मा अल्पज्ञ

दुनिया में सब बुद्धिमान है लेकिन वो सब विषय में कदापि नही हो सकते । एक बच्चा भी मुझसे किसी विषय में बुद्धिमान हो सकता है एक बुजुर्ग भी मुझसे मुर्ख हो सकता है । एक विद्वान् भी मुझसे विद्वान् हो सकता है एक विद्वान् भी मुझसे मुर्ख हो सकता है क्योंकि जीवात्मा अल्पज्ञ है केवल परमात्मा सर्वज्ञ है ।

भास्कर पाठक
9999304525

ईश्वर

निराकार आकार के अभाव को कहते हैं । इसे अनुभव कर सकते हैं । समझाना बड़ा ही क्लिष्ट है लेकिन असंभव नहीं । और समझाने के बाद भी कोई समझ जाये ये जरुरी नहीं है । जैसे हमें भूख लगती है इसे आप खुद अनुभव कर सकते हैं दूसरों को बता भी सकते हैं । लेकिन भूख कैसी होती है भूख को समझाना बहुत कठिन है । ऐसे ही सुख है दुःख है दर्द है ये सब बस अनुभव कर सकते हैं । ठीक ऐसे ही ईश्वर भी है उसे खुली आँखों से कभी नहीं देख सकते बस अनुभव कर सकते हैं ।

भास्कर पाठक
9999304525

Tuesday, 3 November 2015

देव और असुर

🌷 महर्षि दयानंद उवाचः ☝
✒.....मनुष्यों का आचरण दो प्रकार का होता है ......एक सत्य और दूसरा झूठ का । अर्थात् जो पुरुष वाणी, मन और शरीर से "सत्य" का आचरण करते हैं वे "देव" कहाते हैं और जो "झूठ" का आचरण करने वाले हैं वे "असुर" "राक्षस" आदि नामों के अधिकारी होते हैं ।
🌷 भावार्थ /यजुर्वेद भाष्य 1/5💐

सुप्रभात । नमस्ते ।
भास्कर पाठक
9999304525

Sunday, 1 November 2015

ईश्वर का लाभ

भिद्यते हृदयग्रन्थि:
छिद्यन्ते सर्वसंशया: ।
क्षीयन्ते चास्य कर्माणि
तस्मिन्दृष्टे परावरे ।।
(मुण्डकोपनिषद् 2/1/18)

☝ईश्वर का साक्षात्कार होने पर आत्मा की अविद्या नष्ट हो जाती है । सारे संशय मिट जाते हैं और सारे कुसंस्कारों का नाश हो जाता है ।🌹🙏

सुप्रभात । नमस्ते ।
भास्कर पाठक
9999304525

Saturday, 31 October 2015

धर्म के लक्षण

धृति: क्षमा दमोस्तेयं
शौचमिन्द्रियनिग्रह: ।
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो
दशकं धर्मलक्षणम् ।।
(मनु. 6/12)

☝ धैर्य रखना, सहनशील होना, मन को अधर्म से रोकना, चोरी त्याग, राग द्वेष न करना, इन्द्रियों को धर्म में चलाना, बुद्धि बढ़ाना, विद्वान् बनना, सत्याचरण और क्रोध न करना ये दश धर्म के लक्षण है ।

सुप्रभात । नमस्ते ।
भास्कर पाठक
9999304525

Friday, 30 October 2015

तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा

भोगा न भुक्ता वयमेव भुक्ता:,
तपो न तप्तं वयमेव तप्ता: ।
कालो न यातो वयमेव याता:,
तृष्णा न जीर्णा वयमेव जीर्णा: ।।
☝☝ हम सांसारिक विषय भोगों का उपभोग नहीं कर पाये, अपितु उन भोगों को प्राप्त करने की चिंता ने हमको भोग लिया ।
🙏 हमने तप नहीं किया, बल्कि आध्यात्मिक, आधिभौतिक, आधिदैविक ताप हम को ही जीवन भर तपाते रहे ।
🌷 भोगों को भोगते भोगते हम काल को नहीं काट पाये, अपितु काल ने हमको ही नष्ट कर दिया ।
🌹 इसी प्रकार भोगों को प्राप्त करने की तृष्णा तो बूढी नहीं हुई अपितु हम ही बूढ़े हो गये ।🙏🙏🙏
🌷 भतृहरि वैराग्य शतकम् 🌷

सुप्रभात । भास्कर पाठक
9999304525

Monday, 12 October 2015

मेरी असफलता ही मेरी सफलता है ।

मेरी असफलता ही मेरी सफलता है ।

मैं असफल हूँ क्योंकि मैं झूठ नहीं बोलता ।

मैं असफल हूँ क्योंकि मैं धोखा नहीं देता ।

मैं असफल हूँ क्योंकि मैं दिखावा नहीं करता ।

मैं असफल हूँ क्योंकि मैं चोरी नहीं करता ।

मैं असफल हूँ क्योंकि चुगलखोरी नहीं करता ।

मेरी असफलता ही मेरी सफलता है ।

मैं असफल हूँ क्योंकि मैं रिश्वतखोर नहीं हूँ ।

मैं असफल हूँ क्योंकि मैं मुँहचोर नहीं हूँ ।

मैं असफल हूँ क्योंकि मैं अमीर नहीं हूं ।

मैं असफल हूँ क्योंकि मैं नेता या फ़क़ीर नहीं हूँ ।

मेरी असफलता ही मेरी सफलता है ।

🌷🌷भास्कर पाठक🌹🌹

Tuesday, 6 October 2015

राष्ट्र का पिता नहीं पुत्र होता है ।

इस राष्ट्र में जन्मा कोई भी व्यक्ति राष्ट्र का पुत्र ही हो सकता है, पिता नहीं ।

"माता भूमि: पुत्रो अहं पृथिव्या"
-
अथर्ववेद इस भूमि को माँ और सभी को इसका पुत्र कहा, स्वयं प्रभु श्रीराम ने इस जन्मभूमि को जननी और स्वयं को इसका पुत्र कहा ।
-
मोहनदास करमचंद वेदों से और राम से बड़े नहीं हैं,,, वे राष्ट्र के पुत्र हो सकते है, राष्ट्रपिता नहीं.......

Friday, 2 October 2015

जात-पात, भेद-भाव

सब्जी खरीदते समय जाति नहीं देखी जाती
मगर उसी सब्जी को खिलाते समय जाति देखी जाती हैं।।
फसल कटाई पर जाति नहीं देखते
मगर उसकी बनी रोटिया खिलाते समय जाति देखी जाती हैं।।
मकान बनबाने के लिए जाति नहीं देखते
मगर जब मकान बन जाये तो उसमे बैठाने केलिए जाति देखते हैं।।
मंदिर बनबाने के लिए जाति नहीं देखते
मगर उसमे जाने के लिए जाति देखते हैं।।
स्कूल या कॉलेज बनबाने के लिए जाति नहीं देखते
लेकिन पढ़ाई के वक़्त जाति देखि जाती
हैं।।
कपडे खरीदते समय जाति नहीं देखते मगर उन्ही कपड़ो को पहनकर उनसे दूर भागते हैं ।

भेद भाव जात पात की सामाजिक मानसिकता से जब तक बाहर नही निकलेंगे तब तक देश का सम्पूर्ण विकास नहीं होगा ।

Wednesday, 12 August 2015